ब्रज संस्कृति में छप्पन भोग

मनुष्य की सहज विलास प्रवृत्ति का उदात्तीकरण प्रभु की सेवा में भोग, राग एवं श्रृंगार के माध्यम से होता है। भोग अर्पित कर भक्त अपनी ममता एवं अहमता का प्रभु के समक्ष परित्याग करता है।


श्रीमद्वल्लभाचार्य ने गोवर्धन पूजा को भगवान श्री कृष्ण की आलौकिक लीला कहा है एवं उनकी इसी लीला से सम्बन्धित है अन्नकूट महोत्सव एवं छप्पन भोग। ब्रज में विभिन्न उत्सवों, पर्यों एवं अपनी मान्यताओं की पूर्ति पर छप्पन भोगों के आयोजन की अत्यन्त प्राचीन परम्परा रही है। छप्पन भोग प्रभु की सेवा का एक कलात्मक स्वरूप है। जिसे अत्यन्त विशिष्ट महत्वपूर्ण, अद्वितीय, सुखप्रद एवं रसयुक्त माना जाता है।


छप्पन भोग महोत्सवों में सामग्रियों का आधार श्रीमद्भागवत है। छप्पन भोगों के पृष्ठ में आठ निधि स्वरूप गुणित सात पीठों की कुल (8X7 = 56)56 प्रकार की पाक सामग्रियों का समावेश है। मान्यतानुसार छप्पन भोग का प्रारम्भ विधिवत् संवत् 1615 में सिंहाड़ ग्राम में श्रीनाथजी के पाट पर विराजमान होने के साथ हुआ। छप्पन भोग की इस परम्परा के पीछे लम्बी आध्यात्मिक एवं दार्शनिक वैचारिक श्रृंखला है।